Wednesday, 21 March 2012

मदर इंडिया का जमीदार दाने-दाने को मोहताज



लखनऊ। सुपर-डुपर हिट फिल्म मदर इंडिया आपने देखी तो वह दृश्य याद ही होगा जब गांव का जमींदार सुनील दत्त को मारता है तो नरगिस दत्त रोते हुए कहती है..मेरे बेटे पर रहम करो, मत मारो। मदर इंडिया में जमींदार का रोल करने वाले कलाकार का नाम था संतोष कुमार खरे। मदर इंडिया में जमींदार तो मेरा नाम जोकर में राजकपूर के साथ सर्कस का सहयोगी कलाकार सहित सैकड़ों फिल्मों में यादगार रोल करने वाला यह शख्स आज दाने-दाने को मोहताज है। सत्तर बसंत देख चुके संतोष आज राजधानी के ह्दयस्थली हजरतगंज स्थित हनुमान मंदिर के इर्दगिर्द लोगों के हाथ फैलाकर जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं। 
छह महीने पहले शराब के नशे में धुत एक कार चालक द्वारा हजरतगंज चौराहे पर कार चढ़ा देने से चलने-फिरने से लाचार संतोष वैशाखियों के सहारे ही चलते हैं। शनिवार को इस खबरवीस का कान उस वक्त खड़ा हो गया जब अंग्रेजी मेें इस शख्स ने एक कप चाय पिलाने की गुजारिश की। फटेहाल बुजुर्ग के अंग्रेजी में मिन्नत को सुनकर संतोष के साथ इस खबरनवीस ने एक कप चाय पीने के साथ जिंदगी के तार छेड़े तो जो कहानी निकलकर आयी, उसे सुनकर पीड़ा,करुणा के साथ फिल्मी दुनिया के रंगीन चकाचौंध के पीछे का काला सच दिखेगा। चाय की गुजारिश सुनकर चौधरी स्वीट से चाय के साथ आलू टिक्की लाकर देने के बाद उनसे दोस्ताना अंदाज में बात हुई तो दाने-दाने को मोहताज इस कलाकार की जो कहानी सामने आयी उसे सुनकर सूखी आंखों से भी पानी निकल आएगा। सन्ï 1942 में बांदा जिले के कटरा मोहल्ले में अधिवक्ता परिवार में पैदा हुए संतोष बीकाम करने के बाद मुंबई चले गए। नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन में जूनियर आर्टिस्ट के रुप में भर्ती होने के बाद फिल्मों में छोटे-मोटे रोल उस समय दस रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलने लगे। मदर इंडिया में सुनील दत्त के साथ जमींदार के चंद मिनट के रोल में एक छाप छोडऩे के बाद फिल्मी दुनिया में संतोष की गाड़ी चल निकली। दिलीप कुमार के साथ यहूदी की लडक़ी, मुगले-ए-आजम,राजकपूर के साथ मेरा नाम जोकर, बारिश,,कमाल अमरोह की पाकीजा सहित सैकड़ों फिल्मों में काम किए संतोष को गंूज उठी शहनाई फिल्म में एक बेहतरीन रोल मिला। मुंबई से पूना के रास्ते में सतरा जिले में शूटिंग के दौरान आयशा नामक की जूनियर आर्टिस्ट से प्यार भी हुआ। गंूज उठी शहनाई की शूटिंग के बाद जब फिल्म यूनिट मुंबई लौटने लगी तो आयशा को रोते हुए छोडक़र संतोष आए, आज भी उसकी याद में वह अक्सर अकेले रोते हैं। आयशा को अपना नहीं बना सके तो शादी न करने का वचन लेते हुए ब्रम्ह्चारी बन गए। प्यार के पुराने तार छेडऩे पर वह कहते प्यार की याद मत दिलाइए अकेले अक्सर रोता हूं, फिर रुलाएंगे क्या आप। आज आयशा पता नहीं किस हाल में हो, लेकिन उसकी याद में अक्सर वह रोते हैं। लखनऊ कैसे पहुंचे? मुंबई में जब भीषण बाढ़ आयी थी तो उस दौरान मुंबई के विले पार्ले में वचन फिल्म बनाने वाले एके गोयल के घर पर ही रहते थे। फिल्मों में काम मिलना कम हो गया था, उसके बाद मुंबई से बांदा के लिए निकल दिया, अब लखनऊ पहुंच गया हूं, तबसे यहीं बजरंगबली के भरोसे जिंदगी कट रही है। कोई कुछ खाने को दे देता है तो उसके सहारे ही गुजारा बसर हो रहा है। एनएफडीसी जूनियर आर्टिस्टों की मदद के लिए साढ़े चार हजार रुपए महीने में मदद मिलती थी, पिछले सात महीने से वह भी बंद है। वेलफेयर फंड से मिलने वाला पैसा बैंक एकाउंट में आ जाता था, एटीएम से निकाल लेता था। अब तो एकांउट में चार हजार रुपए बचे हैं, रात दारुलशफा के बी ब्लाक में पूर्व मंत्री पारसनाथ मौर्य के घर के बाहर सोता हूं। उनको एटीएम का पासवर्ड दे दिया हूं, कह दिया हूं जिस दिन मर जाऊं तो मेरी लाश जलवा दीजिएगा। घर में कोई नहीं है? मां-बाप है नहीं छोटा भाई जबलपुर रेलवे में एकाउंटेंट के पद पर है। आनंद खरे नाम है, वह जानता है मैं लखनऊ में दाने-दाने को मोहताज हूं, लेकिन कभी देखने नहीं आया। अब तो बजरंगबली ही बेड़ा पार करेंगे। दिमाग कम काम करता है, शरीर भी जवाब दे रहा है। लखनऊ के लोग दिलदार है, खाने-पीने को दे देते हैं, उससे ही गुजारा होता है 

1 comment:

Shince said...

Its a Good collections of yours by your mind.

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