Friday, 30 March 2012

सीमा सिंह को मिला "भोजपुरिया हेलन" सम्मान



भोजपुरी सिनेमा की डांसिंग क्वीन सीमा सिंह को पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित छठे विश्व भोजपुरी सम्मेलन में "भोजपुरिया हेलन" सम्मान से सम्मानित किया गया। नयी दिल्ली के द्वारिका में आयोजित इस समारोह के मंच से सम्मानित करने के लिए जब सीमा सिंह का नाम पुकारा गया तो वहाँ मौजूद सभी लोगो ने ताली बजा के सीमा सिंह का स्वागत किया। इस अवसर पर भोजपुरी सिनेमा जगत के अनेक बड़ी हस्तीयाँ जैसे - कुणाल सिंह, रिंकू घोष, रानी चटर्जी, निर्देशक असलम शेख, निर्माता निर्देशक राजकुमार पांडे भी मौजूद थे। कार्यक्रम का कुशल संचालन मनोज भावुक और अभिनेत्री श्वेता तिवारी ने किया। इस मौके पर मनोज भावुक द्वारा बनाई एक डाक्यूमेंटरी फिल्म "50 साल के भोजपुरी सिनेमा के सफर" दीखाई गयी। गौरतलब है कि सीमा सिंह को पहले भी अनेको सम्मान मिल चुके हैं। 

सीमा "नाच नचइया धूम मचइया" की विजेता भी रह चुकी हैं।  "भोजपुरिया हेलन" का सम्मान मिलने पर 440 bholtage और समूचा भोजपुरी फिल्म जगत की तरफ से उन्हें हार्दिक बधाई।




मनोज तिवारी और मनोज तिवारी


भोजपुरी सिनेमा जगत के मेगा स्टार मनोज तिवारी का जादू छोटे परदे पर एक बार फिर से सर चढ़कर बोल रहा है। महुआ टीवी के रियलटी शो "सुरों का महासंग्राम" को मनोज तिवारी के कुशल एंकरिंग के चलते जबरदस्त टी.आर.पी. मिल रही है। इससे एक बात फिर साफ हो गई है कि भोजपुरिया  दर्शको को मनोज तिवारी का कुशल संचालन बहुत नीक लगता है । हर शुकवार और शनिवार रात आठ बजे से दिखाये जाने इस शो की टीआरपी हिंदी चैनलों से ज्यादा है। जिसका श्रेय शो के एकंर मनोज तिवारी को जाता है। पहले भी मनोज तिवारी "सुर संग्राम" और "नहले पे दहला" का कुशल संचालन कर के महुआ को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिला चुके हैं। "नाच नचईया धूम मचाईया" का संचालन भी मनोज तिवारी ने किया था और उस शो को बढ़िया टीआरपी मिली थी।


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"पागल प्रेमी" में विनय आनन्द का इंटरनेशनल एक्शन




भोजपुरी सुपर स्टार विनय आनन्द इस समय अपनी फिल्म "पागल प्रेमी" को ले के बहुत सुर्खियों में हैं। निर्माता नवीन कुमार सिंह और निर्देशक अजय गुप्ता के इस फिल्म की भोजपुरी वर्ल्ड में सब और चर्चा है। फिल्म में विनय आनंद के नायिका संगीता तिवारी हैं। फिल्म के लिए विनय आनन्द ने बहुत मेहनत से कुंग फू और तलवार बाजी सीखी है। विनय आनन्द ने कुंग फू मास्टर "सी.के. सिंह" से मार्शल आर्ट्स, कुंग फू, तलवार बाजी आ किक बाक्सिंग सीखी है।

पागल प्रेमी फिल्म एक्शन से भरपूर है, सबका ऐसा मानना है की यह फिल्म बहुत हंगामा करने वाली है।


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"तोह पे दिल आईल बा" का संगीत मुहूर्त





एस.एम. गनी प्रोडक्शन के बैनर तले बनने जा रही भोजपुरी फिल्म "तोह पे दिल आईल बा" का भव्य संगीतमय मुहूर्त पिछले दिनो मुंबई, अंधेरी (पश्चिम) के जिप ट्रैक रिकार्डिंग स्टूडियो में इंदू सोनाली के गाये गाने से किया गया। इस मौके पे नारियल फोड़ने की डांसिंग क्वीन सीमा सिंह ने किया। फिल्म में कुल आठ गाने हैं। जिसे शोहरत शेख, मनीष मिश्रा, अमित, शौकत और राजेश लिखे हैं। संगीत मनोज आर्यन और इंदू सोनाली, राजा हसन, पलक, खुशबू जैन और राजेश राज के हैं। फिल्म के निर्माता तनवीर शेख, निर्देशक मेराज खान, लेखक शोहरत शेख, कैमरामैन दिलीप जॉन, नृत्य संतोष कुमार और एक्शन दिलीप यादव कृत है।
कलाकारों में नवोदित तनवीर शेख, गीत शाह, शोहरत शेख, समीर शेख, ऋतु ढिल्लन, रवि शंकर पांडे, सलाउद्दीन, पार्वती सिंह आ आनन्द मोहन मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म में सीमा सिंह का आइटम नंबर भी है। यह फिल्म प्रेम कहानी पर आधारित है जिसमे प्रेम तमाम बाधा पार करके आखिरी में जीतता है। फिल्म के शूटिंग बिहार के सिवान और यूपी के कुशीनगर में अगले महीना से शुरू होगी।

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भोजपुरिया दर्शकों का दिल जीतने आई "मिस कोलकाता"



भोजपुरी सिनेमा की बढ़ती लोकप्रियता हर प्रदेश की खुबसूरत लड़कीयों के अपनी ओर खींच रही है, पाखी हेगड़े, मोनालिसा जैसे खुबसूरत और अदाकारी की हर कला में पारंगत अभिनेत्रियों में एगो नाम और जुड़ गया है "मिस कोलकाता मोहिनी घोष" का। बचपन से डांस की शौकीन रहीं मोहिनी जल्दी ही भोजपुरिया दर्शकों के सामने होंगी, मोहिनी पाँच साल की उम्र से ही बंगला फिल्मों में काम करती आई हैं.. मिस कोलकाता का खिताब जीत चुकल मोहिनी अनेके बंगला धारावाहिक और फिल्मों में आपना हुनर दिखा चुकी हैं। भोजपुरी सिनेमा में आने का श्रेय वो भोजपुरी लोकगायिका और कोलकाता में भोजपुरी के प्रचार प्रसार में जुटीं ममता पाण्डेय को देती हैं जिनके मार्गदर्शन में मोहिनी ने अपनी पहली भोजपुरी फिल्म "विजय तिलक" में काम किया। उनके काम से प्रभावित होके निर्देशक सनोज मिश्रा और निर्माता अंजनी उपाध्याय ने अपनी अगली फिल्म "प्रेम विद्रोही" में उनको लिया। प्रेम विद्रोही के शूटिंग मई से शुरू होगी।.

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Tuesday, 27 March 2012

शादी के बाद


अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रहीं थी,
की संभाले नही संभल रही थी..
सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना
थोडा शरमाते हुये हमें नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिरना,
मुस्कुराते हुये कहना की…

डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को ऑफिस भी है जाना…

घरवाली भगवान का रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था…

५ साल बाद……..



सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
टेबल पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज ऑफिस जाओ तो मुन्ना को
स्कूल छोड़ते हुए जाना…

सुनो एक बार फिर वोही आवाज आयी,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर खुद ही संभाल लेना…


...........................................................
ना जाने घरवाली कैसा रुप ले कर आयी थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख़याल होता है,
अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है…

क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे,
हम एक बार फिर कुंवारे हो जायेंगे !

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Saturday, 24 March 2012

खूंटे में मोर दाल है, का खाउं-का पीउं, का ले के परदेस जाउं...


खूंटे में मोर दाल है, का खाउं-का पीउं, का ले के परदेस जाउं...


यह एक लोक- कथा है. बिहार में, विशेषकर भोजपुरी अंचल में यह खासा-लोकप्रिय है. दादी-नानी से यह संगीतमय कहानी अधिकांश लोगों ने अपने बचपन के दिनों में सुनी होगी. अब सरोकार वैसा नहीं रहा तो आज के बच्चों को ऐसी कहानियां सुनने को भी शायद ही मिलती हो. आप इस लोक कथा को एक बार फिर पढं़े, अपने बचपन के दिन याद करें और नयी पीढ़ी को भी इसके माध्यम से समझाने की कोशिश करंे कि कैसे बड़ी से बड़ी चुनौतियांे का सामना हिम्मत और अक्ल से किया जाए तो रास्ते निकल आते हैं. और एक खास बात यह कि सब उसी की मदद करते हैं, जो अपनी मदद करना स्वयं जानता है-


एक चिड़िया थी, जो रोज दाना चुगने के लिए अपने बच्चों को घोंसले में छोड़कर, दूर जंगलों के पार बस्तियों में जाया करती थी. एक दिन किसी घुरे पर उसने एक चने का दाना पाया. वह उसे लेकर चक्की में दरने के लिए गयी. दाल दरते-दरते एक दाल खूंटे में फंसी रह गई. एक ही दाल बाहर निकली. चिड़िया ने उसे निकलने की अपनी ओर से बहुत कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सकी. चिड़िया बढ़ई के पास गयी और उससे खूंटे में फंसी दाल बाहर निकलने को कहा. बढ़ई कुछ और काम कर रहा था, इसलिए उसे ध्यान नहीं दिया. चिड़िया ने उससे बहुत मिन्नत की. उसने कहा-
बढ़ई-बढ़ई खूंटा चिरो
खूंटा में मोर दाल है
का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
बढ़ई ने उसक� एक न सुनी और उसे दुत्कार कर भगा दिया. फिर वह राजा के पास गयी. चिड़िया ने राजा से गुहार लगाई-राजा ऐसे बढ़ई को दंड दो जो मुझ जरू�रतमंद की बात नहीं सुनता.
राजा-राजा बढ़ई दंडो
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
राजा के पास कहां इतनी फुरसत थी कि नन्हीं चिड़िया की बात सब काम छोड़कर सुनता. जब उसने भी विनती पर कोई ध्यान नहीं दिया तो वह रानी के पास गयी और रानी से बोली- हे रानी, तुम अन्यायी राजा का साथ छोड़ दो.
रानी-रानी राजा छोड़ो
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
रानी भला अपने राजा को क्यों छोड़ने लगी. रानी ने रोती-बिलखती चिड़िया की एक न सुनी और उसकी बात मानने से इंकार कर दिया.
फिर गौरैया उड़ी, सांप के बिल के पास जाकर रोने लगी. बिल से निकले सांप से अपनी विनती दोहराई-
सरप-सरंप रानी डंसो
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
उससे अपनी रामकहानी सुनाकर विषैले सांप से कहा कि तुम जाकर उस रानी को डंसो जो गरीब की गुहार नहीं सुनती. जो रानी सबकुछ जानकर भी हमें राजा से न्याय नहीं दिला सकी और न ही राजा को छोड़ सकी, उसे तुम जाकर क्यांे नहीं डंस लेते? सांप ने भी इसमें अपनी असमर्थता जतायी.
तब भागी-भागी गौरैया जंगल में जा पहुंची और उसने बांस से विनती की कि तुम लाठी बनकर उस सांप को मारो.
गौरैया ने कहा-
लाठी-लाठी सांप पीटो
सांप ना रानी डंसे
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
बांस की लाठी भी भला उस नन्हीं गौरैया के लिए, उस सांप से क्यों बैर मोल लेती. उसने भी इंकार किया तो गौरैया गुस्से से भर उठी और उड़कर भड़भूंजे के यहां भभक रही आग के पास पहुंची और उसे ललकारा-हे आग, तुम सारे जंगल को जलाकर राख कर दो, जिसमें वह बांस के पेड़ हैं, जिसकी लाठी मुझ गरीब और बेसहारा के लिए नहीं उठती. कोई मुझे मेरा हक नहीं दिलाता. आग ने जब सारी बात विस्तार से जाननी चाही तो गौरैया ने अपनी रामकहानी उसके आगे भी सुना दी-
लाठी ना विषधर मारे
विषधर ना रानी डंसे
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
फिर आग ने जब इतनी छोटी सी बात के लिए जब गौरैया की बात मानकर, पूरे जंगल को जलाना ठीक नहीं समझा और जंगल को जलाने से इंकार कर दिया तो गौरैया बहुत दुखी हुई, लेकिन निराश नहीं. वह सागर के पास पहुंची और उसे अपनी पूरी बात सुनाकर आरजू की-
सागर-सागर आग बुझाओ
आग ना जंगल जारे
जंगल ना लाठी भेजे
लाठी ना विषधर मारे
विषधर ना रानी डंसे
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
विशाल सागर भला गौरैया की इस गुहार को क्यों सुनता, वह अपनी मस्ती में हंसता हुआ गुजरता रहा और गौरैया उसके किनारे अपना सिर धुनती रही.
सुबह से शाम होने को आई. गौरैया को जब यहां भी न्याय नहीं मिला तो वह हाथी के पास पहुंची. हाथी के पास उनसे अनुनय की कि तुम चलकर मुझे न्याय दिलवाओ. उस समुद्र को सोख लो जो मुझ दुखियारी की हंसी उड़ाता है. बलवान होते हुए भी अन्यायी के विरूद्ध खड़ा नहीं होता. जानते हो हमारे साथ क्या-क्या गुजरी. और वह गा-गा कर पूरी व्यथा-कथा हाथी को सुनाने लगी-
सागर ना आग बुझावै
आग ना जंगल जारै
जंगल ना लाठी भेजै
लाठी ना विषधर मारै
विषधर ना रानी डंसै
रानी ना राजा छोड़े
राजा ना बढ़ई दंडे
बढ़ई ना खूंटा चीरे
खूंटा में मोर दाल है का खाउं, का पीउं
का ले के परदेस जाउं...
हाथी भी गौरैया की बात सुनकर टस से मस नहीं हुआ. उसने भी उसका साथ नहीं दिया और उसकी बातों को हवा में उड़ाता हुआ, अपने लंबे-लंबे सूप जैसे कान हिलाते मस्ती में आगे निकल गया.
अब नन्हीं गौरैया का धीरज टूटने लगा. वह थककर चूर हो गई थी. जहां की तहां बैठी लाचार-सी होकर आंसू बहाने लगी. सारी दुनिया उसे अंधेरी दिखाई देने लगी. किससे -किससे उसने अपनी कहानी नहीं सुनाई लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की. बेसहारा लाचार की करुण पुकार पर कोई ध्यान नहीं देता. तभी उसके पैरों के पास एक नन्हीं-सी चींटी आकर उसका हाल पूछने लगी. उसने देखा नन्हीं-नन्हीं चींटियों की एक लंबी कतार एक के पीछे एक बहुत ही अनुशासित ढंग से चली आ रही है. उसने ध्यान से देखा उनका अद्भुत संगठन और अथक परिश्रम. वे बड़ी फुर्ती, तत्परता और सुनियोजित ढंग से अपना काम मिलजुलकर किये जा रही थीं.
चींटियों ने आकर उसे घेर लिया और गौरैया से पूरा वृतांत सुना. सुनकर सहानुभूति के साथ बोलीं, बहन! इस दुनिया में रोने-गिड़गिड़ाने से काम नहीं चलता और न ही बैठकर आंसू बहाने से कुछ होता है. हिम्मत हारकर बैठना तो कायरता है, चलो हमारे साथ, हम न्याय दिलाएंगी, कोई रास्ता निकालेंगी.
चलते-चलते चिड़िया यह सोचती रही कि भला यह नन्हीं-नन्हीं चीटियां मेरी क्या मदद करेंगी, जबकि बड़ों-बड़ों ने मुझसे मुंह मोड़ लिया और मेरे किसी काम न आएं. खैर! चलो देखते हैं, कोई तो मेरी मदद के लिए आगे आया है. चींटी बहना हमारा साथ देने चली है तो उसकी फौज भी तो है उसके पीछे, फिर घबराना क्या? देखते हैं क्या होता है?
गौरैया सोचती चली जा रही थी. तभी चींटिेयों ने उससे कहा, तुम किसी पास की पेड़ की डाल पर थोड़ी देर बैठो और देखो मैं क्या करती हूं, कैसे पहाड़ जैसा हाथी मेरे इशारे पर नाचने लगता है और तुम्हारे काम के लिए दौड़ा-दौड़ा समुद्र के पास जाता है. हिम्मत हारने से कुछ नहीं होता. मिलजुलकर जुगत लगाने से ही समस्याओं के समाधान का रास्ता निकलता है.
गौरैया फुर्र से पास के पेड़ की डाल पर जा बैठी और चकित होकर चींटियों की असंभव-सी लगनेवाली बातों को कारगर होते अपनी आंखों के सामने देखती रही.
चींटी धीरे-धीरे हाथी के पैर से सरककर उसके कान तक जा पहुंची. हाथी अपने सूप जैसे कान हिलाता, सूंड से अपने माथे पर फूंक मारता ही रह गया और चींटी उसके कान में घुस कर उसे तंग करने लगी और उसे समझाने लगी, बड़े-बड़े बलवान यदि अपने बल अहंकार मंे चूर होकर दीन-हीन छोटों की सहायता न करें तो उन्हें भी भान होना चाहिए कि काम पड़ने पर छोटे भी यदि अपनी आन-बान के लिए अड़ जाएं तो बड़ों-बड़ों के लिए संकट पैदा कर सकते हैं.
अभी तो मैं अकेले आयी हूं, किंतु मेरे पीछे असंख्य चींटियों की इंबी कतार चली आ रही है. कहीं सबने एक साथ चढ़ाई कर दी तो लेने के देने पड़ जाएंगे. अपने प्राण संकट मंे क्यों डालते हो? मेरी नेक सलाह यही है कि तुम सीधी तरह चलकर गौरैया का काम करो नहीं तो आगे समझ लो...
मरता क्या न करता. हाथी झुंझलाहट और घबराहट में चींटी की बात मानने को लाचार हो गया. वह यह कहते हुए गौरैया के काम के लिए सागर को सोखने को तैयार हो गया-
मोहे काटो-ओटो मत कोई
हम सागर सोखबि लोई.
चींटी ने हाथी का पिंड छोड़ दिया और गौरैया उसे धन्यवाद देते हुए हाथी के पीछे-पीछे उड़ती वापस सागर की ओर लौैटी. हाथी जैसे ही सागर के पास उसे सोखने के इरादे से पहुंचा, सागर हाथ जोड़कर बोला-
मोहे सोखो-वोखो मत कोई
हम आग बुझाइब लोेई.
सागर जब अपनी तटों की सीमा छोड़कर आग बुझाने के लिए उमड़ा, आग ने थर-थर कांपते हुए गौरैया का काम करने का वचन दिया और कहा-
मोहे बुझावो-उझावो मत कोई,
हम जंगल जारब लोई.
आग जंगल को जलाने के लिए बढ़ी, गौरैया भी साथ चली आ रही है, यह जानकर जंगल ने भी वादा किया- मैं लाठी को सांप मारने के लिए तुरंत भेजता हूं लेकिन मुझे जलाकर राख मत करो.
मोहे जारो-ओरो मत कोई
हम सांप के मारब लोई.
सांप की क्या मजाल जो जंगल की बंसवारियों में अनगिनत लाठियों की मार से भयभीत न हो. उसने भी बिल से बाहर आकर गौरैया को भरोसा दिया.
मोहे मारो-ओरो मत कोई
हम रानी डंसब लोई
रानी ने जब सांप को महल में आते देखा और उसके साथ गौरैया को आते देखा तो वह पूरी बात का अनुमान कर पसीने-पसीने हो गई. उसने हाथ जोड़कर विनती की-
मोहे डंसो-ओसो मत कोई
हम राजा त्यागब लोई
रानी के उस वचन के बाद भला राजा क्यों अपने हठ पर टिकता? उसे तो गौरैया के धीरज, अथक परिश्रम और सूझबूझ का समाचार मिल चुका था. उसने अपनी लापरवाही और अन्याय के लिए क्षमा मांगते हुए फौरन बढ़ई को बुलाने का वचन दिया और कहा-
मोहे त्यागो-ओगो मत कोई
हम बढ़ई दंडब लोई
फिर क्या था. बढ़ई ने राजा के सामने आकर गौरैया की बात न मानने का अपराध कबूल किया और थर-थर कांपते हुए राजा से गिड़गिड़ाकर विनती की-
मोहे दंडो-वंडो मत कोई
हम खूंटा फाड़ब लोई.
गौरैया को और क्या चाहिए! गौरैया बढ़ई के साथ उस चक्की के खूंटे के पास पहुंची जिसमें चने की दाल फंसी हुई थी. बढ़ई ने खूंटे से दाल निकालकर दी और गौरैया उसे अपने चोंच में लेकर अपने घोंसले में पहुंची, जहां उसके नन्हें-नन्हें बच्चेे, जब से वह गयी थी, उसकी राह में आंखें बिछाये भूखे-प्यासे बैठे थे. बच्चों ने चहचहाकर उसका स्वागत किया और वह अपने चोंच से चने का दाना अपने बच्चों को खिलाने लगी और गुनगुनाकर पूरी कहानी सुनाने लगी कि कैसे उसने हिम्मत से काम किया. बड़े-बड़ों ने उसकी बात मानकर उसकी मदद की लेकिन जब वह केवल रो-गिड़गिड़ा रही थी तो किसी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया. मदद के लिए आगे आयीं तो वे चींटियां, जिनकी संगठित सेना के सामने हाथी भी लाचार हो गया.
सच ही कहा गया है- सब उसी की मदद करते हैं जो स्वयं अपनी मदद करना जानता है.....

इन पंक्तियों को गाकर देखिए, याद आ जाएगा बचपन का दिन


इन पंक्तियों को गाकर देखिए, याद आ जाएगा बचपन का दिन........


* चल कबड्डी आसलाल, मर गया प्रकाशलाल

* आव तानी रे, डेरइहें मत रे
  कपार कान फूटी- लड़िकपन छूटी- लड़िकपन छूटी...

* ओका-बोका तीन तड़ोका, लऊआ-लाठी चंदन काठी...

* आन्हीं-बुनी आवेले, चिरइयां ढोल बजावेले
  बूढ़ी मइया हाली-हाली, गोइठा उठावेले
  एक मुठी लाई, दामाद फुसलाई
  बुंदी ओनही बिलाई, बुंदी ओनही बिलाई...

* तार काटो, तरकूल काटो, काटो रे बनखाजा
  हाथी प के घुंघरा, चमक चले राजा
  राजा के दुलारी बेटी, खूब बजाए बाजा
  तालवा खुलते नइखे, चभिया मिलते नइखे
  चभिया मिल गइल, तालवा खुल गइल...

* घुघुआ माना, उपजे धाना
  नया भीति उठत हई, पुरान भीति गिरत हई 
  बासन-बरतन सम्हरिये बुढ़िया, ढायं...


इनमें से कौन सा खेल खेले हैं आप ?


इनमें से कौन सा खेल खेले हैं आप ?

सूर
आईस-पाईस
गुल्ली डंडा
पिट्ठो
लट्टू
डेंगा पानी
रूमाल चोर
बोरा दौड़
सुई-धागा दौड़
जलेबी दौड़
चिह्न-चिन्होरिया
मुर्गा युद्ध
गोटी
गोली
जवनकी कबड्डी
बुढ़िया कबड्डी
नौ गोटिया
चौबीस गोटिया
सिरगिटान
खूजाकाट
ओका बोका
आंख मुंदव्वल
धूल सोना
बिछिया
धूहा
बेटा-बेटी
पांच गोटिया
चोर-सिपाही
बाघ-बकरी
गाड़ी-तीती
कौआ ठोकर
चकवा-चकई
जादू-टोना
डोल्हा-पाती
बुझंती-बुझंती
चूहा-बिल्ली
पकौड़ी-पकौड़ी
चुड़ी-चाईं 
लंघाता-लंघाता
घुघुआ-मा
गुड़-गुड़
बालू के टीला-टीला
रस्सी कूद
झूला
चिका-चिकी
कुरसी दौड़
काग-दुरूस या छूंछी
डगरौनी
गिदली
पानी में ईंट खोजना
फितिंगी-फितिंगी
धुरिया विचार
अकिल गुम
गुड्डी-लटाई
घोघोरानी
मसाला पीसना
चढ़नी-चढ़ात
गरूण बाबा
आंख मिचौली
भड़ोका
रामजी-रामजी
घाम की बदरी
बुढ़िया भस भस
रेड़ी लड़ाना
हवाई जहाज दौड़
हाथ जोड़ात
धूप-छांव
सिरबोय-बोय
राजा कोतवाल
बुढ़िया माई
कागज की नाव
सुतऊवल-बईठऊवल
हरवा-तिसिया
मदना गोपाल की
गोरखा-लऊर
काली चोर
बम पिट्ठो
सतघरवा
नाटरघीसा
सतबीती
पवरिया-पवरिया
गोली मुठ
चूंटा-चूंटा
अमृत-विषामृत
भस्मासुर
नेता कौन
लंगड़ी दौड़
लाली
गुड़िया-पुतरी
खो-खो
टैंक युद्ध
विद्युत की छड़ी
डमरू दौड़,
गणेश छू
स्कंध युद्ध
नमस्ते जी
विचित्र छू
बगुला मैनी
कौआ-कौआ
बिच्छू डंक
आव मोरा सोनामती
मैनी चुचुहिया
कित-कित
पोसम पा भाई पोसम पा
कमल फूल
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मैं रहूंगी तो समाज का पानी भी बचाकर रखूंगी




मैं आपकी होली। पिछले कुछ वर्षों से मुझसे एक बड़ा वर्ग अलगाव-दुराव का भाव बरतने लगा है। वे कहते हैं कि मैं तो लुच्चे-लफंगों का त्यौहार हूं। मुझे उन्मादी बताते हैं। लेकिन मैं वैसी हूं नहीं। लोक को मस्ती में पिरोनेवाली हूं मैं। पर्व-त्यौहारों, धार्मिक उत्सवों-आयोजनों के बीच अपने तरह की संभवतः अकेली हूं मैं। धार्मिक पर्व-त्यौहार की शक्ल में रहते हुए भी उससे बहुत अलहदा हूं। सीधा वास्ता नहीं है मेरा धार्मिक अनुष्ठा नों या कर्मकांडों से। मेरे नाम पर पूजा-पाठ कर लो तो ठीक, नहीं करो तो भी कोई बात नहीं। अन्य पर्व-त्यौहारों की तरह किसी खास देवी-देवता की उपासना से भी मेरा ठोस संबंध नहीं। ब्रज वाले कृष्ण- को केंद्र में रखते हैं, अवध वाले रामचंद्र को। बनारस वालों के लिए दिगंबर यानी शंकर की होली भाती है। गांव-जवार में अपने-अपने कुलदेवता को केंद्र में रखते हैं सब। परलोक से भले वास्ता ज्यादा न हो लेकिन लोक से जितना वास्ता है, उतना शायद अन्य त्यौहारों का नहीं।

अब भी चलो गांव में, देख लो कि मैं कैसे अपने नाम पर जातीय और सांप्रदायिक दूरियों को पाटती हूं। कोई दलित और अगड़ी का भेद नहीं होता। जिसे चाहे रंग लगाओ, राह गुजरते हुए पीछे से धूल-गरदा डालकर भाग जाओ। कोई किसी भी जाति का हो, गांव की सार्वजनिक जगह पर जब गीत-गवनई का दौर शुरू होता है, तो यह नहीं पूछा जाता कि कौन फलां जाति का है, कौन क्या है। सब एक साथ बैठते हैं ढोल, झाल लेकर। एक ही रंग में रंगे हुए। बड़े लोगों के दरवाजे पर भी उसी भदेस अंदाज में बात होती है, जो अंदाज किसी मामूली और छोटे लोगों के दरवाजे पर होता है। मस्ती, मस्ती और मस्ती… अल्हड़पन के साथ सामूहिकता को बचाये-बनाये रखने की कोशिश होती है मेरी। मैं सिर्फ हिंदू की नहीं हूं।

फणीश्वरनाथ रेणु को जानते हो न! वे अपने गांव में होली गाने के बाद बगल के मुसलमानों के गांव में झलकूटन का आयोजन करवाते थे। वाजिद अली शाह, नजीर अकबराबादी का नाम सुना है आपने, मेरे पर कई-कई गीत लिख डाले हैं उन्होंने। और भी कई हैं, कितना बताऊं। यह तो आप भी मानते हो न, मैं अकेली हूं, जिसे आप चाहकर भी अकेले नहीं मना सकते। आप दिवाली की तरह नहीं कर सकते कि घर में तरह-तरह के पटाखे लाओ, मिठाइयां लाओ, नये कपड़े पहनो और चकाचौंध लाइट वगैरह जलाकर मना लो। मैं व्यक्तिवाद को तोड़ती हूं। होली मना रहे हो या मनाओगे, इसके लिए समूह में आना ही होगा। दिन-ब-दिन व्यक्तिवादी होते समाज और पर्व-त्यौहारों के बदलते स्वरूप के बीच मेरी पहचान ही सामूहिकता से है।

सब यह भी कहते हैं कि मैं तो दारू-सारू वालों की हूं। यह तो वैसी ही बातें करते हैं जैसे पूरा समाज एक मेरे लिए ही सालों भर इंतजार करता रहता है कि मैं आउं तो दारु-सारू पिएगा। बाकी सालों भर हाथ ही नहीं लगाता। सड़कों पर शादी-बारात का जो जुलूस दिखता है, उसमें कोई कम पीकर हंगामा करते हैं। वही क्यों, सरस्वती पूजा, दुर्गा पूजा के भसान में तो दारू उत्सव ही मनाते हैं सब। कोई नेता जीत जाए तो दारू की नदी बहती है, किसी को जीतना हो तो दारू का ड्रम लाकर रखता है। फिर मेरे से ही दारू वगैरह का नाम क्यों जोड़ते हैं सब। खैर! मैं इससे बहुत परेशान नहीं हूं। मैं आज खुद को बचाने की गुहार लगा रही हूं तो उसकी वजह कुछ दूसरी है, जिससे मेरे अस्तित्व पर संकट मंडराता दिख रहा है।

अब उन्मादी के बाद मुझमें संकट के तत्वों की तलाश की जा रही है। रोज-ब-रोज तरह-तरह के विज्ञापन आ रहे हैं। अभियान चल रहा है। अनुरोध किया जा रहा है। निजी और सरकारी स्तर पर भी। प्रकारांतर से सबकी एक ही गुहार है, एक ही सलाहियत है कि सुखी होली खेलें, तिलक होली खेलें, अबीर की होली खेलें, पानी को बचा लें। पानी को बचाने के लिए मुझे बीच में लाया गया है। सामूहिक रूप से कोशिश हो रही है, जैसे जल संकट का कारण मैं ही हूं। आंकड़े बताये जा रहे हैं कि मैं कितना पानी बर्बाद करवा देती हूं। साल में एक दिन आती हूं मैं, तो इस कदर मेरे नाम से भय का भाव भरा जा रहा है। पानी का वास्ता देकर। कोई यह नहीं पूछता कि एक-एक आदमी ने अपने समाज में कई-कई गाड़ियां क्यों रखी हैं। इटली समेत कई देशों में तो एक घर में एक गाड़ी से ज्यादा रखी ही नहीं जाती। एक-एक आदमी ने यहां चार-चार गाड़ियां रखी हैं। उन्हें धोने में जो पानी जाता है, उससे पानी की बर्बादी नहीं होती क्या?

मेरी पहचान को खत्म करने का अभियान चल रहा है। जैसे मैंने ही सारे जलस्रोतों को सूखा दिया है। नदियों का अस्तित्व मैंने ही खत्म कर दिया है। तालाबों और जलाशयों के नामोनिशां जैसे मैंने ही मिटा दिये हैं। मैं लोक पर्व हूं, सामूहिकता में जीती हूं। मैं पानी बचाने का विरोध नहीं कर रही। पानी बचेगा तभी मैं बचूंगी लेकिन मेरे मूल पहचान को भी बचे रहने दो। अब तो रंग-पानी ही मेरी पहचान है न! पहले तो लोग अलकतरा, अलमुनियम पेंट वगैरह भी लगा देते थे लेकिन अब सब अपने-अपने समाज ने बदल लिया है। समाज चाहता है कि उसका आयोजन बदलते समय के साथ सुंदर रूप में रहे। सर्वाइव करने लायक रहे। अब रंग-पानी पर भी आफत नहीं लाओ। अखबारवाले अभियान नहीं चलाओ न! लोगों का मानस नहीं बदलो न! मुख्यमंत्री-राज्यपाल वगैरह भी अपील कर रहे हैं कि सूखी होली खेलें, तिलक-अबीर होली खेलें। वे यह क्यों नहीं कहते कि एक गाड़ी रखो, गाड़ी रोज नहीं धोया करो, वह पानी की ज्यादा बर्बादी करवाता है। मैं ही सबके निशाने पर क्यों हूं। बाजार वाले चाहकर भी मेरे नाम पर दीपावाली या दशहरे की तरह बाजार खड़ा नहीं कर पा रहे इसलिए क्या! नहीं मालूम। लेकिन एक सच्ची बात कहूं। मैं रहूंगी तो समाज का पानी भी बचाकर रखूंगी। मुझे बचा लो प्लीज!


Pakhi - Bikini baby of Bhojpuri cinema






The most popular and successful Bhojpuri actress Pakhi Hedge is going to become hotter like Urmila was in Rangeela. Bhojpuri cine veiwers are going to see her for the first time in the most sexy look and the theatres will burst out with oohs and aahas. Even the most cool will start sweating seeing her looks in Shiva.
Bhojpuri film Shiva has been produced by the Movie Mughal of South Indian cinema D. Ramanaidu and the film is due to be released shortly. This scene was shot at the most beautiful tourist spot called Vizag at the sea beach. A romantic scene has been filmed on Pakhi and Nirahua in this song sequence which will pull viewers again and again to the theaters.
Till now Pakhi was known for her acting skills, innocent face, simplicity, and enchanting smiles. But, now she is going to be remembered more as a bikini baby of Bhojpuri cinema.


Wednesday, 21 March 2012

मदर इंडिया का जमीदार दाने-दाने को मोहताज



लखनऊ। सुपर-डुपर हिट फिल्म मदर इंडिया आपने देखी तो वह दृश्य याद ही होगा जब गांव का जमींदार सुनील दत्त को मारता है तो नरगिस दत्त रोते हुए कहती है..मेरे बेटे पर रहम करो, मत मारो। मदर इंडिया में जमींदार का रोल करने वाले कलाकार का नाम था संतोष कुमार खरे। मदर इंडिया में जमींदार तो मेरा नाम जोकर में राजकपूर के साथ सर्कस का सहयोगी कलाकार सहित सैकड़ों फिल्मों में यादगार रोल करने वाला यह शख्स आज दाने-दाने को मोहताज है। सत्तर बसंत देख चुके संतोष आज राजधानी के ह्दयस्थली हजरतगंज स्थित हनुमान मंदिर के इर्दगिर्द लोगों के हाथ फैलाकर जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं। 
छह महीने पहले शराब के नशे में धुत एक कार चालक द्वारा हजरतगंज चौराहे पर कार चढ़ा देने से चलने-फिरने से लाचार संतोष वैशाखियों के सहारे ही चलते हैं। शनिवार को इस खबरवीस का कान उस वक्त खड़ा हो गया जब अंग्रेजी मेें इस शख्स ने एक कप चाय पिलाने की गुजारिश की। फटेहाल बुजुर्ग के अंग्रेजी में मिन्नत को सुनकर संतोष के साथ इस खबरनवीस ने एक कप चाय पीने के साथ जिंदगी के तार छेड़े तो जो कहानी निकलकर आयी, उसे सुनकर पीड़ा,करुणा के साथ फिल्मी दुनिया के रंगीन चकाचौंध के पीछे का काला सच दिखेगा। चाय की गुजारिश सुनकर चौधरी स्वीट से चाय के साथ आलू टिक्की लाकर देने के बाद उनसे दोस्ताना अंदाज में बात हुई तो दाने-दाने को मोहताज इस कलाकार की जो कहानी सामने आयी उसे सुनकर सूखी आंखों से भी पानी निकल आएगा। सन्ï 1942 में बांदा जिले के कटरा मोहल्ले में अधिवक्ता परिवार में पैदा हुए संतोष बीकाम करने के बाद मुंबई चले गए। नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन में जूनियर आर्टिस्ट के रुप में भर्ती होने के बाद फिल्मों में छोटे-मोटे रोल उस समय दस रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलने लगे। मदर इंडिया में सुनील दत्त के साथ जमींदार के चंद मिनट के रोल में एक छाप छोडऩे के बाद फिल्मी दुनिया में संतोष की गाड़ी चल निकली। दिलीप कुमार के साथ यहूदी की लडक़ी, मुगले-ए-आजम,राजकपूर के साथ मेरा नाम जोकर, बारिश,,कमाल अमरोह की पाकीजा सहित सैकड़ों फिल्मों में काम किए संतोष को गंूज उठी शहनाई फिल्म में एक बेहतरीन रोल मिला। मुंबई से पूना के रास्ते में सतरा जिले में शूटिंग के दौरान आयशा नामक की जूनियर आर्टिस्ट से प्यार भी हुआ। गंूज उठी शहनाई की शूटिंग के बाद जब फिल्म यूनिट मुंबई लौटने लगी तो आयशा को रोते हुए छोडक़र संतोष आए, आज भी उसकी याद में वह अक्सर अकेले रोते हैं। आयशा को अपना नहीं बना सके तो शादी न करने का वचन लेते हुए ब्रम्ह्चारी बन गए। प्यार के पुराने तार छेडऩे पर वह कहते प्यार की याद मत दिलाइए अकेले अक्सर रोता हूं, फिर रुलाएंगे क्या आप। आज आयशा पता नहीं किस हाल में हो, लेकिन उसकी याद में अक्सर वह रोते हैं। लखनऊ कैसे पहुंचे? मुंबई में जब भीषण बाढ़ आयी थी तो उस दौरान मुंबई के विले पार्ले में वचन फिल्म बनाने वाले एके गोयल के घर पर ही रहते थे। फिल्मों में काम मिलना कम हो गया था, उसके बाद मुंबई से बांदा के लिए निकल दिया, अब लखनऊ पहुंच गया हूं, तबसे यहीं बजरंगबली के भरोसे जिंदगी कट रही है। कोई कुछ खाने को दे देता है तो उसके सहारे ही गुजारा बसर हो रहा है। एनएफडीसी जूनियर आर्टिस्टों की मदद के लिए साढ़े चार हजार रुपए महीने में मदद मिलती थी, पिछले सात महीने से वह भी बंद है। वेलफेयर फंड से मिलने वाला पैसा बैंक एकाउंट में आ जाता था, एटीएम से निकाल लेता था। अब तो एकांउट में चार हजार रुपए बचे हैं, रात दारुलशफा के बी ब्लाक में पूर्व मंत्री पारसनाथ मौर्य के घर के बाहर सोता हूं। उनको एटीएम का पासवर्ड दे दिया हूं, कह दिया हूं जिस दिन मर जाऊं तो मेरी लाश जलवा दीजिएगा। घर में कोई नहीं है? मां-बाप है नहीं छोटा भाई जबलपुर रेलवे में एकाउंटेंट के पद पर है। आनंद खरे नाम है, वह जानता है मैं लखनऊ में दाने-दाने को मोहताज हूं, लेकिन कभी देखने नहीं आया। अब तो बजरंगबली ही बेड़ा पार करेंगे। दिमाग कम काम करता है, शरीर भी जवाब दे रहा है। लखनऊ के लोग दिलदार है, खाने-पीने को दे देते हैं, उससे ही गुजारा होता है 

Tuesday, 20 March 2012

भारतीय सिनेमा के सौ साल


 अगले साल भारतीय सिनेमा के सौ साल पूरे होने का जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो गई है। भारतीय सिनेमा के पितामाह दादा साहब फाल्के ने देश की पहली फिल्म राजा हरीशचंद्र 1913 में बनाई थी। यह मूक फिल्म हिंदू पौराणिक कथा पर आधारित थी। इसी के साथ शुरू हुई भारत की रजतपट की गाथा। आगे जाकर हॉलीवुड की तर्ज पर बॉलीवुड बना।


खबर है कि महानायक अमिताभ बच्चन और सुपरहिट फिल्म पा के निर्माता आर बाल्की संयुक्त रूप से भारतीय सिनेमा पर 15 मिनट की एक फिल्म बनाने जा रहे हैं। वहीं हिंदी सिनेमा में योगदान देने वाले प्रत्येक निर्देशक पर 40 मिनट की डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए कई फिल्म निर्माताओं ने हाथ मिलाया है।


अभिनेता रितेश देशमुख भी फिल्मी हस्तियों के हाथों की छाप लेने में व्यस्त हैं। दरअसल अभिनेता इसे हॉलीवुड के वॉक ऑफ फेम की तर्ज पर अपने निर्माणाधीन म्यूजियम लीजेंड्स वॉक के लिए इकट्ठा कर रहे हैं। इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन डायरेक्टर्स एसोसिएशन (आइएफटीडीए) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अशोक पंडित के मुताबिक अगर सब कुछ ठीक रहा तो अगले साल गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी को बच्चन परिवार, खान तिकड़ी और कपूर परिवार के साथ-साथ मशहूर आइटम ग‌र्ल्स भी दिल्ली के राजपथ पर अपनी प्रस्तुति दे सकती हैं।


वैसे जश्न की शुरुआत इस साल से शुरू हो चुकी है। अप्सरा पुरस्कारों के दौरान भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध हस्तियों को याद किया गया था। यही नहीं दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित 20वां पुस्तक मेला भी साहित्य और सिनेमा विषय पर आधारित था। आधिकारिक रूप से कार्यक्रमों की शुरुआत आगामी जून से होगी, जो अगले साल मई तक चलेगी।


आइएफटीडीएक फिल्म निर्देशकों और प्रशंसकों के लिए डिजीटल आरकाइव बनाने की तैयारी में भी है। भारतीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय भी इसमें पीछे नहीं है। मंत्रालय की योजना अगले साल मुंबई में फिल्म म्यूजियम स्थापित करने की है। म्यूजियम में फिल्म की पटकथा, परिधान, सेट की डिजाइन और फिल्म मैगजीन जैसे कई चीजों को प्रदर्शित करने की योजना है। यही नहीं मंत्रालय पिछले 60 साल के दौरान बनी यादगार फिल्मों को इंटरनेट पर डालने की तैयारी में है। 

Saturday, 17 March 2012


THE GREAT SACHIN TENDULKAR NEW HOUSE PICS.........


Master Blaster Sachin Tendulkar New House (Shell House)


 BATHROOM

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 THIS IS ONE "WILD" SOFA SET

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GARDEN 

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