भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री - पब्लिसिटी के प्रति उदासीनता
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री पिछले पाच सालों में काफी आगे बढ़ चुका है। हम आधुनिक टेक्नालाजी का प्रयोग कर रहे हैं, जम कर ग्राफिक्स का फ़ायदा उठा रहे हैं। हर किसी के दिमाग में हिंदी फिल्मो से मुकाबला करने की बात चल रही है। पर आज भी कुछ चीज़ें हैं, जोकि भोजपुरी सिनेमा को सीमित रखे हुए है। उन चीजों में बहुत ख़ास महत्त्व है पब्लिसिटी का, फिल्मो के प्रचार का। फिल्म बनाना एक टीम वर्क है, हर विभाग को अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करना होता है। फिल्म के हर पक्ष का सही होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि फिल्म की एक कमी भी उसे डुबाने के लिए काफी होता है। और आज के समय में, जब फिल्मो की लागत और उसके प्रचार के लागत को बराबर अहमियत देनी चाहिए, भोजपुरी सिनेमा में ऐसा कुछ चलन आया ही नहीं है।
वर्तमान में हम भोजपुरी फिल्मों के क्वालिटी पर काफी बहस सुन रहे हैं। बहुत से लोगों का कहना है की फलां फिल्म साफ़ होते हुए भी सिनेमाघरों में सिर्फ ३-४ दिन ही टिक पाई। पर वही लोग इस बात का ध्यान नहीं देते की कितने लोगों को पता था कि वह फिल्म रिलीज हो रही है, उसमें क्या खासियत है, कैसे गाने हैं। आज जब कि हम हिंदी फिल्म भी चुन-चुन के देखते हैं(जिनका बहुत अच्छे तरीके से प्रचार होता है), तो हम यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि बिना किसी प्रचार के, बिना धूम धडाके के फिल्म को रिलीज कर के अपने पैसे भी निकाल लेंगे ? फिल्म का अच्छा होना बहुत ही जरूरी है, पर उन अच्छाइयों का प्रचार होना भी उतना ही जरूरी है, नहीं तो फिल्में ऐसे ही आती और जाती रहेंगी।
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